जब सवाल तमक कर उठते हैं, तब मन के किसी कोने में छुपे जवाब चुपचाप, गर्दन झुकाये, खुद को खोज लिये जाने का इंतज़ार करते हैं… आज सुबह मन में चिरंजीवी शब्द ने कौतूहल रचा था.. दिन भर इसी बारे में पढ़ती रही.. कितनी ही कथाएँ, किंवदन्तियाँ, धार्मिक आस्था के प्रतीक और स्थल, मेरे सामने खुलते चले गए.. और मैं अवाक थी कि इन कहानियों में जो गूढ़ अर्थ और दर्शन छुपा है, वह इतना सूक्ष्म है कि आंखों के सामने होते हुए भी कई कई बार छूटता है..
शुरुआत चिरंजीवी शब्द से करूं, तो इसका विच्छेद चिरम्-जीवी होगा.. यानि कि लंबे समय तक जीवित रहने वाला न कि अमर (immortal) पर शायद हमारे विस्मय खोजते मन को कुछ असम्भव ही चाहिए.. इसलिए जब भी इन आठ चिरंजीवियों के बारे में सुना, झट अमरता से जोड़ डाला और बुद्धि ने विश्वास करने से मना कर दिया..
पर कुछ दिनों से महसूसने लगी हूँ कि इस संसार मे बहुत कुछ ऐसा है जो बुद्धि के परे है, कुछ ऐसा जो प्रत्यक्ष होते हुए भी परोक्ष रूप में ही दिख सकता है.. या यूं कहूँ कि मन के भीतर झांक कर, बिना किसी अंधविश्वास या अंधविरोध के, सहज सरल तरीके से जीवन के मूल तत्व को समझने का प्रयास, अकेली बुद्धि के बस की बात ही नहीं..
खैर, आज जिस कहानी ने मन मोह लिया, वो है मार्कण्डेय ऋषि के जन्म और मृत्यु से साक्षात्कार की कथा.. भृगु ऋषि के कुल में मृकण्डु नाम के ऋषि हुए.. वे और उनकी पत्नी मरूदमती, विवाह के कई वर्ष बाद भी सन्तान सुख से वंचित रहे.. पति पत्नी ने जतन से शिव की आराधना आरम्भ की.. एक रात शिवजी दोनों पति पत्नी के स्वप्न में एक साथ आये और कहने लगे कि तुम्हें पुत्र तो अवश्य मिलेगा पर … या तो दीर्घायु और मूढ़मति होगा या अल्पायु और बुद्धिमान.. बुद्धि और आयु दोनों गुण एक साथ देने में मैं सक्षम नही.. पति पत्नी अवाक थे.. बरसों का सपना पूरा होने के कगार पर था.. किंतु एक अजीब सी शर्त के साथ..
मृकण्डु और मरूदमती ने सुबह उठकर अपना स्वप्न एक दूसरे से सांझा किया और इस बात की सहमति जताई कि मूर्ख सन्तान अगर लंबे समय तक धरती पर जी भी ले, तो भी बुद्धिमान अल्पायु पुत्र से बहुत कम सुख देगी.. अंततः उन्होंने शिव से अल्पायु पुत्र का वरदान लेने का निश्चय किया और मार्कण्डेय का जन्म हुआ.. वे 16 साल की उम्र किस्मत में लिए जन्मे थे पर ज्ञानार्जन और शिवभक्ति में कुछ यूं रमे कि मृत्यु का समय कब नज़दीक आया, उनके माता पिता को भी पता न चला..
कहते हैं कि जब यमदूत मार्कण्डेय को लेने आये, तो उन्हें शिवभक्ति में लीन देखकर, उनके प्राण हरने की हिम्मत ही न जुटा पाये.. अंततः यमराज को स्वयं आना पड़ा.. यम ने जैसे ही मार्कण्डेय को मारने के लिए अपना पाश उनकी तरफ उछाला, शिवजी अपने रौद्र रूप में प्रकट हो गये और यम को ही मृत्यु के घाट उतारने लगे.. यम अनुनय विनय करने लगा.. शिव पसीज गये और यमराज को छोड़ अपने भक्त की ओर मुड़े.. उसे गले से लगाया और कई कल्पों तक जीने का वरदान देकर अंतर्ध्यान हुए.. चूंकि शिव ने यमराज को मृत्यु के द्वार पर पहुंचा दिया था, उनके इस रूप को कालान्तक (मृत्यु को समाप्त करने वाले) के रूप में, केरल के थिरुकद्दुवर नाम के मंदिर में आज भी पूजा जाता है.. मार्कण्डेय ऋषि इस घटना के बाद चिरंजीवी कहलाये और उन्होंने मार्कण्डेय पुराण व दुर्गा सप्तशती की रचना भी की..
अब कहने को तो ये केवल एक कहानी है, जिसके सत्य अथवा काल्पनिक होने के प्रमाण व कारण, हम सब अपने हिसाब से चुन और गुन सकते हैं.. पर वहीं दूसरी ओर इसका एक अप्रत्यक्ष रूप है, जो मुझे कहीं ज़्यादा प्रभावित कर जाता है..
मुझे मृकण्डु और मरूदमती, हमारी अतृप्त इच्छाओं और कामनाओं के रूपक मात्र लगते हैं.. ठीक वैसे ही जैसे हम अपने सपनों को पूरा करने की जल्दी में, किन्ही विशेष परिस्थितियों में सबसे आसान व लुभावना फैसला लेते हैं, उसके दूरगामी परिणामों को सोचे समझे बगैर.. और फिर कुछ समय बाद, जितना मिल चुका, उस से असंतुष्ट हो, अधिक और बेहतर विकल्पों के लिए उत्कंठित हो उठते हैं.. समय हाथ से फिसलता देखकर, किस्मत की दुहाई देने लगते हैं.. और इन सब बातों में ये भूल ही जाते हैं कि शायद उसके मूल में हमारा ही कोई फैसला रहा होगा.. दरअसल एव्री एक्शन हैस एन इक्वल एंड अपोजिट रिएक्शन, न्यूटन का ही नहीं, प्रकृति का भी धर्म रहा है..
इसी कहानी को थोड़ा और समझने का प्रयत्न करें तो ये कड़ी भी खुल जाती है कि किस्मत इंसान के द्वारा खुद बनाई व बिगाड़ी जा सकती है.. मन की अदम्य इच्छा के समक्ष काल (समय) व परिस्थिति दोनों घुटने टेक देते हैं और हम अपनी चुनी राह को कोसते न रहकर, कहीं बेहतर दिशा में ले जा सकते हैं…डेस्टिनी और फ्री विल एक ही तराजू के दो पलड़े हैं.. जिस वक्त हम भाग्य को दोष दे रहे होते हैं, उसी समय दूसरे पलड़े में हमारी इच्छाशक्ति कुलबुला रही होती है…
दरअसल हमारी पौराणिक कथाएं विशुद्ध जीवन दर्शन हैं.. शायद आवश्यकता केवल अतिउत्साही बुद्धि के घोड़ों पर लगाम लगा, चित्त स्थिर करने की है.. बहुत सी असम्भव बातें भी सच हुए जातीं हैं…
Anupama
#Katha
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