हिंदी काव्य प्रेमियों के लिए सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, किसी परिचय के मोहताज नहीं…. छायावाद के स्तम्भ कवि, अपनी श्रेष्ठ प्रकृति कविताओं और अनूठी उपमाओं के लिए जाने जाते हैं.. उन्हें पढ़ना सुखद अनुभूति है… अनायास ही प्रेम हो जाता है उनके लयमय छंदों से.. हृदय वीणा सुमधुर बज उठती है और सप्त स्वर गूंजने लगते हैं
उनकी कविता संध्या सुंदरी, उनकी काव्य समृद्धि का एक विलक्षण उदाहरण है.. जब कवि हौले हौले कहते हैं
“दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या-सुन्दरी, परी सी,
धीरे, धीरे, धीरे…”
तो अनायास ही मन भंवर गुंजन कर उठता है.. उनकी इस कृति को अपने अंदाज़ में सुनाने कि कोशिश की है मैंने अपने यूट्यूब चैनल ‘मेरे शब्द मेरे साथ’ में
आप मेरे चैनल को सब्सक्राइब भी कर सकते हैं ताकि मेरी नयी कविताएं व मेरे प्रिय कवियों की रचनाएं आप तक पहुंच सकें…
Recent Comments