भीगे भीगे पलों में
सूखे सूखे लम्हों में
तुम चले आते हो
बारिश की बूंदों में
धूप की किरचों में
तुम ही गुनगुनाते हो
बगीचे में, दरीचे में
खिंचे खिंचे, भिंचे भिंचे
तुम ही नज़र आते हो
जाने कितने सावन बीते
पतझड़ कितने फना हुए
कितना चींख चींख रोए
कितना दिल को समझाए
और फिर पूनम की रात
अक्खड़ चांदनी से हम
तुम तक लौट आए….
Anupama
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