Hindi Poetry

जुस्तजू

उफक छूने की अब हसरत न रही
टूटते तारों में वजूद ढूंढता है कोई?

फलक पर चांद की जुस्तजू न रही
नाज़ुक जुगनुओं से खेलता है कोई?

हाथों से फिसलती रेत सा वक्त
चाहकर भी रोक पाया है कोई?अनुपमा सरकार

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