अजब छटपटाहट है मन में
पंख फड़फड़ाते हैं उड़ते नहीं
कदम लड़खड़ाते हैं संभलते नहीं
दम घुटता है सिसकियां थमतीं नहीं
भरसक कोशिश के बावज़ूद बेचैन हूँ
10 बाय 10 के कमरे में
2 बाय 2 के रोशनदान से
छँटकर आती किरणों को महसूस करती हूँ
भागकर दरवाज़े तक जा
सूरज को एकटक घूरती हूँ
किनमिनातीं हैं आँखें
झट पर्दा खींच लेती हूँ
राह आसां तो उसकी भी नहीं
कौन जाने जो मैं जी रही हूँ
वो भी किसीका ख़्वाब हो…
Anupama
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