Fiction

किस्मत

महीने के दिन चढ़ने वाले थे। सरला के मन में रह-रह कर कौंध जाती सास की धमकी “अब की पेटसे न हुई तो वीरू का दूजा ब्याह करा दूंगी। कब तक बांझ को घर बिठाए रखूं। दस साल हो चले शादी को। लड़का जन्मना तो दूर, चूजा तक न उतरा कोख में। ऐसी भी क्या बदनसीबी। औरत का तो काम ही है बच्चे जनना। वंश का नाम भी तो आगे बढ़ाना है। पहले साल में ही आ गया था धर्मा गोद में और उसके दो साल बाद वीरू, फिर तो पूछो ही मत, तीन कुड़ियां भी जन्मीं, दो मर गईं, पर कम्मो बाकी रह गई। तीन बच्चों को पालपोस कर जवान किया है मैंने और एक तू करमजली, दस साल में एक न कर सकी”

सरला को सास के ये ताने कांटों से चुभते, आंखों में पिघला कांच उतर आता और सारी रात चुपचाप कोरों से बहता रहता। आखिर वो भी माँ बनना चाहती थी, नन्हें मुन्ने को गोद में लेकर अपना बचपन फिर से जीना चाहती थी। पर चाहने से क्या होता है भला। खुद की चार बार डाक्टरी जांच करवा चुकी थी। कोई खोट न था उसमें, बस किस्मत ही खराब थी या डाक्टर की मानें तो शायद वीरू में ही कुछ कमी थी।

पर ये बात चाहकर भी किसी से कह न सकी थी वो। स्वाभिमानी वीरू की मर्दानगी इस ख्याल को हज़म भी न कर पाती। दूसरे ब्याह को आतुर होने लगा था वो भी आजकल। ऐसा कुछ कह देती तो झोंटा पकड़ घर से ही निकाल देता। शादी टूटती नजर आ रही थी उसे और उम्मीद की किरण धुंधली।

यकायक सामने की सड़क से ट्रक निकला। घर हाईवे के पास ही था। ट्रकों का आनाजाना लगा ही रहता और ड्राइवरों का बेशर्मी से घूरना भी। जाने-अनजाने एक शैतानी स्कीम कौंध गई, सरला के दिमाग में। “एक बार आजमा ही लूं किस्मत। क्या पता मेरा ब्याह टूटने से बच ही जाए। मर्द सारी जिंदगी के लिए दूसरी कर सकता है, औरत क्या एक रात के लिए भी नहीं” और बिन कुछ सोचे समझे सड़क की ओर बढ़ गई वो।

अगली सुबह उसकी लाश झाड़ियों में मिली। शायद फैसला ठीक से कर नहीं पाई थी।
Anupama

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