1 घंटे तक बारिश और बीच बीच में ओले गिरे… धरती को सफ़ेद होते देखने का रोमांच ही अलग है… पर इस बेमौसम की बारिश पर मन झूमता नहीं… नाज़ुक पितुनिया खिले थे… सब टूट गए… अभी मेड अफ़सोस जता रही थी, “दीदी इत्ते सारे गमले के पीछे से उठा के लाई हूं, सब बरबाद हो गए”
साथ ही उसे अपनी गेंहू की खड़ी फसल की चिंता भी होने लगी… मैंने पूछा, अभी फिलहाल काट नहीं सकते… बोली, “गांव में हफ़्ते से रोज़ बादल घिरते हैं… कल ही मां ने बताया कि भाई भाभी आलू खोद लाए हैं, कि कुछ तो बचे, गेंहू तो इतनी जल्दी कटने से रही”
उसकी बातें सुनते हुए मैं पूरी गम्भीरता से वैदर, इकॉनमी और इमोशंस का कनेक्शन स्थापित करने में जुटी थी… तभी वो बोली, “दीदी मालूम! 29 अप्रैल को धरती पलट जाएगी”
मैंने उसे विस्मय से देखा… वो अपनी रौ में बोलती रही “उनके मोबाइल पर मैसेज आया था, आज बारिश ओले का, तब मैं न मानी थी… पर देखो न धूप में भी ओले गिर गए… अब तो भगवान जी से प्रार्थना करो कि 29 वाला सच न होय!”
टेक्नोलॉजी और इमोशंस का नया कनेक्शन अब सामने था और मैं एकदम चुप…
इस बार कुछ अलग ही है मौसम… और उस पर अफवाहों का कहर भी… कोरोना से लेकर प्रलय तक… जब उसने इतनी सरलता से एक भविष्यवाणी के चलते दूसरे के सच होने की बात कही, तो मैं चुप रह गई… वो सिर्फ़ इतना मानती है कि मोबाइल पर अाई एक बात सच हुई तो दूसरी भी हो सकती है… जबकि एक साइंटिफिक प्रिडिक्शन है और दूसरा सिर्फ़ कयास… टेक्नोलॉजी ने सबके हाथों में ताकत दी है, नकारात्मक सकारात्मक दोनों परिणाम झेलने होंगें… अनुपमा सरकार
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